भक्ति -2

Sanjay Bajpai
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भक्ति का अर्थ: परमात्मा के प्रति प्रेम और सेवा

भक्ति कोई दिखावा नहीं है। यह केवल मंदिर में दीप जलाने या माला फेरने तक सीमित नहीं है। भक्ति का अर्थ है भगवान के लिए असीम प्रेम। जब किसी भक्त के हृदय में भक्ति जगती है, तो उसके भीतर परमात्मा को देखने, उनसे मिलने और उनका सान्निध्य पाने की तीव्र आकांक्षा उत्पन्न होती है। जीवन के हर कर्म में मन उन्हीं की ओर प्रवाहित रहता है—जैसे नदियाँ समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं।

💧 जब प्रेम शुद्ध होता है

ऐसी आत्मीयता मन को पवित्र कर देती है। और जब हृदय शुद्ध होता है, तब व्यक्ति हर जीव में ईश्वर को देखने लगता है। विचार शुद्ध और ऊँचे हो जाते हैं। और तब उसे वह दिव्य आनंद प्राप्त होता है, जो किसी भौतिक सुख से कहीं अधिक संतोष प्रदान करता है।


वेदव्यास द्वारा भक्ति की परिभाषा

गरुड़ पुराण में वेदव्यास जी ने भक्ति को सेवा का रूप माना है:

भज इत्येष वैधातुः सेवायां परिकीर्तितः।  
तस्मात् सेवा बुधैः प्रोक्ता भक्तिः साधनभूयसी॥  

👉 अर्थ: "भज" धातु का अर्थ है 'सेवा करना'। अतः भक्ति वह है जो सेवा की भावना से उत्पन्न होती है। यह मोक्ष प्राप्ति के साधनों में सर्वोत्तम मानी गई है।

यदि हम किसी को प्रेम करते हैं, तो हम उसके लिए कुछ करना चाहते हैं। जैसे—कोई कहे "मैं देश से प्रेम करता हूँ" और युद्ध के समय वह सेना में भर्ती होने से इंकार कर दे, तो उसका प्रेम असत्य प्रतीत होगा। यही बात भगवान के लिए भी लागू होती है—सच्ची भक्ति सेवा की इच्छा में प्रकट होती है।


🙌 भक्ति हमारे जीवन के हर पहलू में

भक्ति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। यह जीवन के हर कार्य में समाहित की जा सकती है:

🧑‍💼 व्यवसाय में भक्ति

यदि आप व्यापारी हैं, तो बिना भक्ति के आपका उद्देश्य होगा—"पैसे कमाऊँ ताकि सुख भोग सकूँ।"
पर यदि आप ईश्वर से प्रेम करते हैं, तो सोच बदलती है—"पैसे कमाऊँ ताकि अपनी आवश्यकताओं के बाद भगवान की सेवा में लगा सकूँ।"

📚 अध्ययन में भक्ति

एक छात्र के रूप में आपकी सोच हो सकती है—"अच्छे अंक लूँ ताकि प्रसिद्धि मिले।"
लेकिन भक्त कहेगा—"ज्ञान प्राप्त करूँ ताकि भविष्य में श्रीकृष्ण की सेवा और महिमा कर सकूँ।"

🍲 भोजन में भक्ति

सामान्य सोच—"स्वादिष्ट खाऊँ, बीमार पड़ जाऊँ तो भी चलेगा।"
भक्त की सोच—"स्वस्थ खाऊँ ताकि शरीर मजबूत रहे और अधिक सेवा कर सकूँ।"


🌺 निष्कर्ष

भक्ति जीवन का मार्ग है, मोक्ष का साधन है और आत्मा की सच्ची तृप्ति है। यह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक जीवंत अनुभव है, जो हमारे जीवन को दिव्यता से भर देता है।

जिस दिन आप अपने हर विचार और कर्म में भगवान को केंद्र में रखने लगेंगे, उसी दिन आपकी भक्ति की शुरुआत होगी।



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