🌺 दुर्गा पूजा: ब्रह्मांडीय शक्ति और स्त्रीत्व की जीवंत अभिव्यक्ति

Sanjay Bajpai
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                                 🌺 दुर्गा पूजा: ब्रह्मांडीय शक्ति और स्त्रीत्व की जीवंत अभिव्यक्ति

हर साल शरद ऋतु की शुरुआत में जब आकाश में सुनहरी आभा फैलती है और हवा में भक्ति की सुगंध घुल जाती है, तब नवरात्रि का पर्व देवभूमि भारत से लेकर विश्व के कोनों तक जीवंत हो उठता है। इन नौ रातों में हर घर, गली, और मंदिर में जागरण होता हैशक्ति, उस स्त्री शक्ति की जो सृजन, संरक्षण और विनाश की मूल प्रेरणा है।

इन विविध उपासनों में से, बंगाली परंपरा की दुर्गा पूजा अपनी भव्यता और आध्यात्मिक गहराई के कारण सबसे अलग स्थान रखती है। मगर इसके पीछे छिपे हैं गूढ़ प्रतीक, स्त्री चेतना के रहस्य, और वह अदृश्य से दृश्य की यात्रा जो हर भक्त को भीतर तक झकझोर देती है।


                                           🏡 घरेलू आराधना से सार्वजनिक पंडाल तक

दुर्गा पूजा की शुरुआत अक्सर घरों से होती हैजहाँ मिट्टी से बनी माँ की मूर्ति स्थापित होती है, दीप प्रज्वलित होते हैं, और दुर्गा सप्तशती जैसे ग्रंथों का पाठ होता है। व्रत, उपवास और रात्रि जागरण जैसे प्रयोगों के साथ यह आराधना गहराई प्राप्त करती है।

बाद में यही पूजा विस्तार पाकर सार्वजनिक उत्सव का रूप ले लेती हैखासतौर पर कोलकाता और वाराणसी में, जहाँ भव्य पंडाल, रंगीन मूर्तियाँ, और विशाल जनसमूह मिलकर भक्ति को महाकाव्य का रूप देते हैं। हालांकि घरों की पूजा की गूढ़ता और सूक्ष्मता अब अधिकतर रामा कृष्ण मिशन या आनंदमयी माँ आश्रम जैसे संस्थानों तक सीमित रह गई है।


                                                        🦁 माँ की मूर्ति का गहन संदेश

मुख्य आकर्षण होती है माँ दुर्गा की मूर्ति, जहाँ वह अपने सिंह पर आरूढ़, महिषासुर का वध करती दिखाई देती हैं। साथ में लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिकेयये सब मिलकर एक पूर्ण दिव्य परिवार प्रस्तुत करते हैं, जो समस्त ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतीक है।

मगर पूजा सिर्फ मूर्तियों तक सीमित नहीं है। देवी की उपासना होती है कलश, वनस्पतियों के समूह, और प्राकृतिक तत्वों के माध्यम से भीजो बताते हैं कि शक्ति प्रकृति के प्रत्येक तत्व में समाहित है।


                                            📚 संस्कृत मंत्र: देववाणी में छिपे रहस्य

पूरे अनुष्ठान में जो मंत्र उच्चारित होते हैं, वे प्राचीन संस्कृत भाषा में होते हैंजिन्हें बहुत कम लोग (यहाँ तक कि कई पुजारी भी) पूर्णतः समझ पाते हैं। मगर ये मंत्र केवल ध्वनि नहींये हैं आध्यात्मिक सूत्र, जो देवी के स्वरूपों, कर्मों और पूजा की गूढ़ व्याख्या करते हैं।

जैसे कालिका पुराण में कहा गया हैदेवी को "बोधिता" (जाग्रत) किया जाता है, दूर से बुलाया नहीं। यानी पूजा का उद्देश्य है देवी की उपस्थिति को प्रकट करना, कि उन्हें कहीं से बुलाना।


                                                   🌸 स्त्री शक्ति का पर्व

दुर्गा पूजा का सबसे प्रभावशाली पहलू है इसकी स्त्री शक्ति के साथ गहन संवेदनात्मक जुड़ाव यह पर्व केवल देवी की पूजा नहीं, बल्कि एक वार्षिक सृजनात्मक ऊर्जा का पुनर्जागरण हैजो पूरे ब्रह्मांड में प्रवाहित होती है।

यह स्त्री शक्ति सामाजिक जीवन में भी झलकती हैजहाँ कन्याएं, माताएं और विभिन्न स्त्री अवस्थाओं को विशेष सम्मान मिलता है। लेकिन इसके साथ ही कुछ वर्गों को संस्कारों और मर्यादाओं में बाँधने की प्रवृत्ति भी दिखती हैजिससे स्पष्ट होता है कि समाज स्त्री शक्ति को पूजता है, मगर नियंत्रित भी करना चाहता है


                                    🧘 निष्कर्ष: दुर्गा पूजा द्वारा अनुष्ठान की परिभाषा

🌺 दुर्गा पूजा: ब्रह्मांडीय शक्ति और स्त्रीत्व की जीवंत अभिव्यक्ति

हर साल शरद ऋतु की शुरुआत में जब आकाश में सुनहरी आभा फैलती है और हवा में भक्ति की सुगंध घुल जाती है, तब नवरात्रि का पर्व देवभूमि भारत से लेकर विश्व के कोनों तक जीवंत हो उठता है...

🕉 संस्कृत श्लोक

ॐ सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

हिंदी अनुवाद: हे देवी! आप समस्त कल्याणों की जननी हैं, शिव स्वरूपा हैं, सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली हैं, भक्तों को शरण देने वाली हैं। आपको नमस्कार है।

✍ लेखक: संजय बाजपेई
💠 दृष्टिकोण: आध्यात्मिक

दुर्गा पूजा हमें केवल धार्मिक परंपरा की समझ देती है, बल्कि यह बताती है कि अनुष्ठान क्या होता हैएक ऐसा संरचित अनुभव, जो मानवीय और दिव्य तत्वों को जोड़ता है।

इसके प्रतीकों, मंत्रों और क्रियाओं के माध्यम से हमें यह दिखता है कि भक्त कैसे पवित्रता के साथ संवाद करते हैं, धार्मिक ढाँचे में लिंग संबंधों की भूमिका कैसी है, और प्राचीन आध्यात्मिक दृष्टिकोण आज भी हमारे जीवन को कैसे दिशा दे रहे हैं।



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