चक्र प्रणाली: योग और आध्यात्मिक चेतना का रहस्यमय विज्ञान

Sanjay Bajpai
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चक्र प्रणाली: योग और आध्यात्मिक चेतना का रहस्यमय विज्ञान


कुन्दलीन्यै नमस्तुभ्यं, सर्वरूपे सनातनि।
सर्वोत्पत्ति स्वरूपायै, परायै परमात्मने॥

— तंत्रसार

अनुवाद: हे कुंडलिनी! तुम्हें प्रणाम, जो सनातन और समस्त रूपों में व्याप्त हैं। समस्त सृष्टि की उत्पत्ति जिनसे होती है, उन परमात्मस्वरूपा तुम्हें नमन।

मूलाधारे स्थितं शक्तिं, कुंडलाकृतिमाश्रिताम्।
योगिनो ध्यानयुक्तास्तु, प्रबोधयन्ति तां पुनः॥

— शिव संहिता

अनुवाद: मूलाधार चक्र में स्थित कुंडलिनी शक्ति सर्पाकार रूप में निवास करती है। योगी ध्यानपूर्वक उसका जागरण कर आत्मबोध की ओर अग्रसर होते हैं।

सहस्रदलपद्मस्थे, योगिनां ध्यानगोचरे।
परमेश्वरि सर्वेशि, प्रसन्न भव भक्तितः॥

— देवी उपासना तंत्र

अनुवाद: हे परमेश्वरी! जो सहस्रार कमल में योगियों के ध्यान में स्थित हैं — तुम सभी की अधिष्ठात्री हो। भक्तिपूर्वक तुम्हारी कृपा प्राप्त हो, यही प्रार्थना है।

चक्र की अवधारणा प्राचीन भारत की हिंदू और योग परंपराओं से उत्पन्न हुई है, जहां संस्कृत में *चक्र* का अर्थ होता है "पहिया" या "ऊर्जा का घूर्णनशील केंद्र"। यह चक्र मानव शरीर में सूक्ष्म ऊर्जा केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं, जिनके माध्यम से ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्रवाहित होती है।





ऐतिहासिक उत्पत्ति

  • उपनिषदों में प्राण और नाड़ियों का उल्लेख मिलता है।
  • मैत्री उपनिषद में सुषुम्ना नाड़ी का उल्लेख है, जो चक्रों के ऊर्ध्वगामी मार्ग की धुरी है।
  • सत्-चक्र-निरूपण (1577 ई.) जैसे ग्रंथों में चक्रों का व्यवस्थित वर्णन मिलता है।
  • 1919 में सर जॉन वुड्रूफ की पुस्तक The Serpent Power से पश्चिम में चक्र दर्शन लोकप्रिय हुआ।

चक्र प्रणाली की संरचना

योग परंपरा में मुख्यतः सात चक्र माने जाते हैं जो सुषुम्ना नाड़ी के साथ जुड़े होते हैं:

  • प्रत्येक चक्र से जुड़ा होता है: एक तत्व, रंग, बीज मंत्र, देवता और कमल की पंखुड़ियाँ।
  • नीचे से ऊपर की ओर जाने पर चेतना की सूक्ष्मता और आध्यात्मिक कंपन बढ़ता है।

मुख्य चक्र और उनका कार्य

  1. मूलाधार (जड़): पृथ्वी तत्व, स्थिरता।
  2. स्वाधिष्ठान: जल तत्व, रचनात्मकता।
  3. मणिपुर: अग्नि तत्व, आत्मबल।
  4. अनाहत: वायु तत्व, प्रेम व करुणा।
  5. विशुद्ध: आकाश तत्व, संप्रेषण।
  6. आज्ञा: अंतर्दृष्टि और विवेक।
  7. सहस्रार: ब्रह्म चेतना से एकत्व।

कुंडलिनी और आध्यात्मिक प्रगति

कुंडलिनी शक्ति एक सुप्त ऊर्जा है जो मूलाधार में निवास करती है। ध्यान, प्राणायाम और मंत्रों द्वारा इसे जगाकर ऊपर की ओर ले जाया जाता है — सहस्रार तक। यह प्रक्रिया आध्यात्मिक जागृति और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।

विविध परंपराओं में चक्र

  • बौद्ध योग: पांच चक्र प्रणाली।
  • चीनी चिकित्सा प्रणाली: ची और मेरिडियन।
  • कब्बाला, सूफी और ताओवाद में भी ऊर्जा केंद्रों की अवधारणा।

मनोवैज्ञानिक और चिकित्सा दृष्टिकोण

चक्र प्रणाली को कुछ चिकित्सा पद्धतियों में भी अपनाया गया है:

  • OME (Organic Mind Energy) और Seemorg Matrix Work जैसी मनोचिकित्साएं।
  • शरीर-आधारित चिकित्सा: राइखियन थेरेपी, बायोएनर्जेटिक्स आदि।
  • अत्यधिक ध्यान से कुछ मामलों में “ध्यान की बीमारी” भी देखी गई है, जिसमें सिरदर्द, घबराहट या असंतुलन उत्पन्न होता है।

आधुनिक युग में चक्र दर्शन

पश्चिमी न्यू एज आंदोलन ने चक्रों को लोकप्रिय बनाया है। मैस्लो की आवश्यकता श्रेणी और चक्रों के बीच भी समानता देखी गई है — जैसे मूलाधार जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से जुड़ा है और सहस्रार आत्म-साक्षात्कार से।

"चक्र प्रणाली केवल आध्यात्मिक नहीं, एक समग्र जीवन दृष्टिकोण है, जो शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करती है।"

समापन

चक्र दर्शन हमें यह समझने का माध्यम देता है कि हम केवल भौतिक शरीर नहीं हैं, बल्कि ऊर्जा, चेतना और आध्यात्मिकता का जटिल तंत्र हैं। चक्रों के माध्यम से हम न केवल आत्मविकास कर सकते हैं, बल्कि जीवन की गहराइयों को भी समझ सकते हैं।

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