### 🔱 ब्रह्म: निराकार परम तत्त्व
ब्रह्म कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि निराकार, अनंत और सच्चिदानंद रूप है। न वह जन्म लेता है, न मरता है। वह सीमाओं से परे है और वही एकमात्र सत्य है।
### 🌍 जगत: माया का भ्रम
शंकराचार्य कहते हैं, यह जगत हमें वास्तविक लगता है, लेकिन यह माया का परिणाम है। संसार चूंकि परिवर्तनशील और क्षणभंगुर है, इसलिए स्थायी सत्य नहीं हो सकता। उन्होंने स्पष्ट किया:
> **ब्रह्म सत्यम् जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
**
> अर्थात, ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है, और जीव ब्रह्म का ही रूप है।
### 🔍 माया और अविद्या
माया को शंकराचार्य ने “अनिर्वचनीय” कहा — जो न पूर्ण रूप से है, न पूर्ण रूप से नहीं है। यह ज्ञान के अभाव से जन्म लेती है और जीव को सत्य से भटकाती है।
*विवेकचूडामणि* में वे लिखते हैं:
> **मायाकल्पितदेशनांकालकल्पनया वृतम्।**
> अर्थात, माया देश, काल और नाम के आभास से ब्रह्म को ढँक देती है।
### 🧘 मोक्ष की ओर ज्ञान का मार्ग
शंकराचार्य कर्म से नहीं, बल्कि ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति की बात करते हैं। उन्होंने बताया कि:
>
**चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये।
**
> कर्म केवल मन की शुद्धि के लिए है; ब्रह्म की प्राप्ति के लिए विचार (ज्ञान) आवश्यक है।
मोक्ष के लिए उन्होंने तीन साधन बताए — *श्रवण*, *मनन*, और *निदिध्यासन*।
### 🗺️ आज के संदर्भ में अर्थ
वर्तमान समय में जब भौतिक उपलब्धियाँ ही जीवन का मापक बन गई हैं, यह विचार हमें आत्मिक संतुलन की ओर लौटने का आमंत्रण देता है। ब्रह्म को पहचान कर हम भौतिकता से ऊपर उठकर शांति, करुणा और विवेक के मार्ग पर चल सकते हैं।
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